इस देश का ऐसा कौनसा ग्राम है जिसमे क्षत्रिय निवास करते हो, वहाँ सती तथा जुंझरों की देवलियाँ नहीं हो ? ऐसा कौनसा धर्मग्रंथ है जिसमे क्षत्रिय या क्षत्राणियों की कीर्ति गाथा का उल्लेख न हो, ऐसा कौनसा तीर्थ है जहाँ पर क्षत्रियों ने तपस्या न की हो तथा ऐसा कौनसा किला है जहाँ धधकती ज्वालाओं में कूद कर क्षत्राणियों ने जौहर व्रत का पालन न किया हो । जब विश्व के लोग हमारे इन करतबों को पढ़ते है तो उनकी आँखें सजल हो उठती है व मस्तक श्रद्धा से झुक जाते है ।
चित्तौड़, रणथम्भौर, भटनेर, (हनुमानगढ़) एवं जैसलमेर के दुर्गों को हजारों विदेशी पर्यटक हमारी गौरव गाथाओ से प्रभावित होकर देखने के लिए आते है उनके लिए यह पर्यटन-स्थल है, लेकिन जब कोई क्षत्रिय इन दुर्गो के खुले हुए दरवाजों को देखते है तो उन्हें आभास होता होगा कि इन खुले हुए दरवाजों में से अभी-अभी कई रणबांकुरे, मौत के दीवाने घोड़ो पर सवार होकर निकले होंगे और तलहटी में किले पर घेरा डालने वाली शत्रु सेना पर टूट पड़े होंगे। क्षत्राणियां जब इन किलो में प्रवेश करती होंगी तो उन्हें लगता होगा कि वीर साका करके निकल चुके है, अंदर धाँय-धाँय करती हुई चिताएँ जलती होगी और क्षत्राणियां सौलह श्रृंगार कर अपने पतियो से पहले स्वर्ग में पहुँचने के लिए अग्नि स्नान कर रही होंगी।
आज स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जा रहा है मानव सभ्यता का विकास हुए आठ हजार वर्ष हुए है। यह प्रचारित किया जा रहा है कि आठ वर्ष पूर्व मानव पूरी तरह असभ्य और जंगली था तब एक करोड़ साठ लाख से अधिक वर्ष पूर्व हुए राम-रावण युद्ध का इतिहास "रामायण" एवम् पाँच हजार से अधिक पहले हुए कौरव-पांडव युद्ध का इतिहास "महाभारत" क्या उपन्यास नहीं समझे जाएंगे ?
आज के युग के क्षत्रिय व क्षत्राणियों का चरित्र क्या यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त नही होगा कि जो कुछ शौर्य, त्याग व तपस्या की बातें इतिहासों में उल्लिखित है वे सब काल्पनिक है, जिन वंशो में निक्कमी और नाजोगी संतानें उत्पन्न होती है वे न केवल अपने लिए अपयश का संचय करती है बल्कि पूर्वजों के यश को भी, मटियामेट कर देती है। जिस कौम के पीछे इतना दैदीप्यमान इतिहास और वह इतिहास भी यदि उनके पतनकाल में पुनरुत्थान की प्रेरणा नही दे सके तो फिर समझ लेना चाहिए कि इस वंश का अंतिम अध्याय लिखा जा चूका है।
भगवान ने हमको ऐसे संक्रमणकाल में पैदा किया है जब हमारी राज्यलक्ष्मी व गृहलक्ष्मी नष्ट हो चुकी है। जिनको हमने अपना मित्र समझा था वह शत्रु बनकर हमारे सामने खड़े है, जो यथार्थ में हमारे मित्र थे उनको हमने अपना शत्रु बना लिया और हम स्वयं तपहीन, बुद्धिहीन , शक्तिहीन हुए दासता का जीवन जीने में ही अपना कल्याण समझते है । यदि इस विकट काल में भी हमने इतिहास से प्रेरणा नही ली एवं पूर्वजो द्वारा संचित यश को सुरक्षित रखने के लिए कर्त्तव्य-मार्ग का अनुसरण नहीं किया तो आने वाले जमाने में हमारे इतिहास को या तो लोग पाखंड कहेंगे या फिर एक काल्पनिक उपन्यास की संज्ञा देंगे । इसके विपरीत यदि हमने इतिहास से प्रेरणा लेकर अपने पूर्वजों के यशस्वी चरित्रों से मार्ग-दर्शन प्राप्त कर, कर्त्तव्य-मार्ग पर आगे बढ़ने का साहस किया तो निश्चित रूप से हमारे अंदर वह शक्ति उत्पन्न होगी जो आज की बिलखती मानवता को पुनः आनंद की अनुभूति करा सकेगी। लेकिन यह कार्य इतना सुगम नही है कि जिसको आसानी से किया जा सके ।पूँजीपति व बुद्धिजीवियों के षड्यंत्रों को तब तक विफल नही किया जा सकता जब उनसे संघर्ष करने वाले के पास विपुल आध्यात्मिक एवं बौद्धिक शक्ति न हो। शस्त्र की लड़ाई का समय आने से पूर्व शास्त्र की लड़ाई में विजय प्राप्त करनी होगी, अपने व पराए लोगो को मानसिक दासता से मुक्त करना होगा, जो बिना आध्यात्मिक शक्ति की सहायता के सम्भव नही है।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि क्षत्रियों पर जब-जब भी विपत्ति आई है, क्षत्राणियों ने संकट से मुक्त होने के लिए ने केवल उनका साथ दिया बल्कि आगे होकर मार्ग दर्शन भी किया है। आज फिर वैसा ही समय उपस्थित है, इस विकट समय में यदि समाज का स्त्री-वर्ग संघर्ष की भूमिका में पिछड़ जाएगा तो संघर्ष में सफलता मिलना संभव नही है। अतः क्षत्राणियों पर यह एक महान उत्तरदायित्व है कि वे अज्ञान, अशिक्षा एवं अंधविश्वासों के विनाशकारी घेरों की तोड़कर बाहर निकालें व वीर मताएँ, वीर पत्नियाँ, वीर कन्याएँ कहलाने का सौभाग्य फिर से प्राप्त करे एवं अपनी संतानों में नव-चेतना व नव जागृति फूंके, उन्हें कर्त्तव्य मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे, वे ऐसी संतानों की माताएँ बने जो अपने लिए नही, संसार की रक्षा के लिए सच्चाई व अच्छाई की रक्षा के लिए, अमृत-समाज का पालन करने के लिए ही जिन्दा रहने वाले हों व इसी कर्त्तव्य पालन के लिए मरने में अपना गौरव समझते हो तब इतिहासकार को बरबस लिखना पड़ेगा यह धर्मग्रन्थ, यह इतिहास मात्र उपन्यास ही नही वास्तविकता है, क्योंकि हम देख रहे है इनकी पुनरावृत्ति हो रही है व युग युग तक होती रहेगी ।.....Next
चित्तौड़, रणथम्भौर, भटनेर, (हनुमानगढ़) एवं जैसलमेर के दुर्गों को हजारों विदेशी पर्यटक हमारी गौरव गाथाओ से प्रभावित होकर देखने के लिए आते है उनके लिए यह पर्यटन-स्थल है, लेकिन जब कोई क्षत्रिय इन दुर्गो के खुले हुए दरवाजों को देखते है तो उन्हें आभास होता होगा कि इन खुले हुए दरवाजों में से अभी-अभी कई रणबांकुरे, मौत के दीवाने घोड़ो पर सवार होकर निकले होंगे और तलहटी में किले पर घेरा डालने वाली शत्रु सेना पर टूट पड़े होंगे। क्षत्राणियां जब इन किलो में प्रवेश करती होंगी तो उन्हें लगता होगा कि वीर साका करके निकल चुके है, अंदर धाँय-धाँय करती हुई चिताएँ जलती होगी और क्षत्राणियां सौलह श्रृंगार कर अपने पतियो से पहले स्वर्ग में पहुँचने के लिए अग्नि स्नान कर रही होंगी।
आज स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जा रहा है मानव सभ्यता का विकास हुए आठ हजार वर्ष हुए है। यह प्रचारित किया जा रहा है कि आठ वर्ष पूर्व मानव पूरी तरह असभ्य और जंगली था तब एक करोड़ साठ लाख से अधिक वर्ष पूर्व हुए राम-रावण युद्ध का इतिहास "रामायण" एवम् पाँच हजार से अधिक पहले हुए कौरव-पांडव युद्ध का इतिहास "महाभारत" क्या उपन्यास नहीं समझे जाएंगे ?
आज के युग के क्षत्रिय व क्षत्राणियों का चरित्र क्या यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त नही होगा कि जो कुछ शौर्य, त्याग व तपस्या की बातें इतिहासों में उल्लिखित है वे सब काल्पनिक है, जिन वंशो में निक्कमी और नाजोगी संतानें उत्पन्न होती है वे न केवल अपने लिए अपयश का संचय करती है बल्कि पूर्वजों के यश को भी, मटियामेट कर देती है। जिस कौम के पीछे इतना दैदीप्यमान इतिहास और वह इतिहास भी यदि उनके पतनकाल में पुनरुत्थान की प्रेरणा नही दे सके तो फिर समझ लेना चाहिए कि इस वंश का अंतिम अध्याय लिखा जा चूका है।
भगवान ने हमको ऐसे संक्रमणकाल में पैदा किया है जब हमारी राज्यलक्ष्मी व गृहलक्ष्मी नष्ट हो चुकी है। जिनको हमने अपना मित्र समझा था वह शत्रु बनकर हमारे सामने खड़े है, जो यथार्थ में हमारे मित्र थे उनको हमने अपना शत्रु बना लिया और हम स्वयं तपहीन, बुद्धिहीन , शक्तिहीन हुए दासता का जीवन जीने में ही अपना कल्याण समझते है । यदि इस विकट काल में भी हमने इतिहास से प्रेरणा नही ली एवं पूर्वजो द्वारा संचित यश को सुरक्षित रखने के लिए कर्त्तव्य-मार्ग का अनुसरण नहीं किया तो आने वाले जमाने में हमारे इतिहास को या तो लोग पाखंड कहेंगे या फिर एक काल्पनिक उपन्यास की संज्ञा देंगे । इसके विपरीत यदि हमने इतिहास से प्रेरणा लेकर अपने पूर्वजों के यशस्वी चरित्रों से मार्ग-दर्शन प्राप्त कर, कर्त्तव्य-मार्ग पर आगे बढ़ने का साहस किया तो निश्चित रूप से हमारे अंदर वह शक्ति उत्पन्न होगी जो आज की बिलखती मानवता को पुनः आनंद की अनुभूति करा सकेगी। लेकिन यह कार्य इतना सुगम नही है कि जिसको आसानी से किया जा सके ।पूँजीपति व बुद्धिजीवियों के षड्यंत्रों को तब तक विफल नही किया जा सकता जब उनसे संघर्ष करने वाले के पास विपुल आध्यात्मिक एवं बौद्धिक शक्ति न हो। शस्त्र की लड़ाई का समय आने से पूर्व शास्त्र की लड़ाई में विजय प्राप्त करनी होगी, अपने व पराए लोगो को मानसिक दासता से मुक्त करना होगा, जो बिना आध्यात्मिक शक्ति की सहायता के सम्भव नही है।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि क्षत्रियों पर जब-जब भी विपत्ति आई है, क्षत्राणियों ने संकट से मुक्त होने के लिए ने केवल उनका साथ दिया बल्कि आगे होकर मार्ग दर्शन भी किया है। आज फिर वैसा ही समय उपस्थित है, इस विकट समय में यदि समाज का स्त्री-वर्ग संघर्ष की भूमिका में पिछड़ जाएगा तो संघर्ष में सफलता मिलना संभव नही है। अतः क्षत्राणियों पर यह एक महान उत्तरदायित्व है कि वे अज्ञान, अशिक्षा एवं अंधविश्वासों के विनाशकारी घेरों की तोड़कर बाहर निकालें व वीर मताएँ, वीर पत्नियाँ, वीर कन्याएँ कहलाने का सौभाग्य फिर से प्राप्त करे एवं अपनी संतानों में नव-चेतना व नव जागृति फूंके, उन्हें कर्त्तव्य मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे, वे ऐसी संतानों की माताएँ बने जो अपने लिए नही, संसार की रक्षा के लिए सच्चाई व अच्छाई की रक्षा के लिए, अमृत-समाज का पालन करने के लिए ही जिन्दा रहने वाले हों व इसी कर्त्तव्य पालन के लिए मरने में अपना गौरव समझते हो तब इतिहासकार को बरबस लिखना पड़ेगा यह धर्मग्रन्थ, यह इतिहास मात्र उपन्यास ही नही वास्तविकता है, क्योंकि हम देख रहे है इनकी पुनरावृत्ति हो रही है व युग युग तक होती रहेगी ।.....Next
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